प्रयागराज, त्रिवेणी संगम की पावन भूमि, एक बार फिर 2025 में महाकुंभ के दिव्य आयोजन का साक्षी बनने जा रही है। यह विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है, जहाँ करोड़ों श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में डुबकी लगाकर मोक्ष की कामना करते हैं। यदि आप भी महाकुंभ 2025 में प्रयागराज जाने की योजना बना रहे हैं, तो यह लेख आपके लिए एक मार्गदर्शिका है। यहाँ हम आपको प्रयागराज के 10 ऐसे पवित्र स्थानों के बारे में बताएँगे जहाँ आपको अवश्य जाना चाहिए।
महाकुंभ का महत्व:
महाकुंभ एक ऐसा पर्व है जो हर 12 वर्ष बाद प्रयागराज में आयोजित होता है। यह ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार निर्धारित होता है, जब सूर्य और बृहस्पति विशेष राशियों में प्रवेश करते हैं। माना जाता है कि इस दौरान संगम में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाकुंभ न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और आध्यात्मिकता का भी प्रतीक है।
प्रयागराज महाकुंभ 2025: 13 जनवरी से 26 फरवरी
प्रयागराज में महाकुंभ 2025 का आयोजन 13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी, 2025 तक होगा। इस दौरान लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से यहाँ आएँगे।
महाकुंभ की कुछ मुख्य स्नान तिथियाँ इस प्रकार हैं:
- 10 जनवरी 2025: पौष शुक्ल एकादशी (प्रथम स्नान)
- 13 जनवरी 2025: पौष पूर्णिमा
- 14 जनवरी 2025: मकर संक्रांति (प्रथम शाही स्नान)
- 29 जनवरी 2025: मौनी अमावस्या (द्वितीय शाही स्नान)
- 2 फरवरी 2025: बसंत पंचमी (तृतीय शाही स्नान)
- 12 फरवरी 2025: माघ पूर्णिमा
- 26 फरवरी 2025: महाशिवरात्रि
प्रयागराज के 10 पवित्र स्थान:
महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में कई ऐसे स्थान हैं जहाँ जाना अत्यंत फलदायी माना जाता है। इनमें से 10 प्रमुख स्थानों का विवरण नीचे दिया गया है:
10. शंकर विमान मंडपम, प्रयागराज

शंकर विमान मंडपम एक अपेक्षाकृत नया मंदिर है, जो अपनी अनूठी वास्तुकला और भव्यता के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और संगम के उत्तर में गंगा नदी के बाएं किनारे पर स्थित है। महाकुंभ के दौरान, हज़ारों भक्त इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं।
वास्तुकला की भव्यता:
शंकर विमान मंडपम की सबसे खास बात इसकी वास्तुकला है। यह मंदिर दक्षिण भारतीय शैली में बनाया गया है, जो इसे प्रयागराज के अन्य मंदिरों से अलग बनाता है। इसकी ऊँचाई और भव्यता देखते ही बनती है। मंदिर के शिखर पर बने जटिल नक्काशी और मूर्तियाँ दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं।
दर्शन और अनुभव:
मंदिर में भगवान शिव के साथ-साथ अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं, जिनमें कुमारिल भट्ट, जगतगुरु आदि शंकराचार्य, कामाक्षी देवी, तिरुपति बालाजी और योग शास्त्र सहस्त्रयोग लिंग प्रमुख हैं। मंदिर के अंदर का शांत वातावरण और आध्यात्मिक ऊर्जा भक्तों को एक दिव्य अनुभव प्रदान करती है।
संगम का मनोरम दृश्य:
शंकर विमान मंडपम की एक और विशेषता यह है कि यहाँ से त्रिवेणी संगम का मनोरम दृश्य दिखाई देता है। मंदिर की ऊँचाई से संगम का विहंगम दृश्य देखना एक अद्भुत अनुभव होता है, खासकर शाम के समय सूर्यास्त के दौरान।
महाकुंभ में विशेष महत्व:
महाकुंभ के दौरान, शंकर विमान मंडपम का महत्व और भी बढ़ जाता है। हज़ारों श्रद्धालु संगम में स्नान करने के बाद इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर के आसपास का क्षेत्र भी मेले के दौरान विशेष रूप से सजाया जाता है, जिससे यहाँ का माहौल और भी दिव्य हो जाता है।
कैसे पहुंचे:
शंकर विमान मंडपम प्रयागराज शहर में स्थित है और यहाँ तक पहुंचना आसान है। शहर के किसी भी हिस्से से आप टैक्सी, ऑटो रिक्शा या बस द्वारा मंदिर तक पहुँच सकते हैं। महाकुंभ के दौरान, मेला क्षेत्र से भी मंदिर के लिए विशेष परिवहन व्यवस्था की जाती है।
9. पातालपुरी मंदिर, प्रयागराज

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, पातालपुरी मंदिर धरती के नीचे बना हुआ है। यह एक तहखानेनुमा संरचना है जहाँ कई देवी-देवताओं की प्राचीन मूर्तियाँ स्थापित हैं। मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है और इसका उल्लेख विभिन्न पौराणिक कथाओं में भी मिलता है।
इतिहास और किंवदंतियाँ:
पातालपुरी मंदिर के इतिहास के बारे में कई किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। कुछ लोगों का मानना है कि इस मंदिर का संबंध रामायण काल से है और भगवान राम ने अपने वनवास के दौरान यहाँ कुछ समय बिताया था। यह भी माना जाता है कि यहाँ एक कुआँ था जिसमें श्रद्धालु मोक्ष की प्राप्ति के लिए कूद जाते थे। बाद में, मुगल बादशाह अकबर ने जब किले का निर्माण करवाया, तो उस कुएँ को बंद करवा दिया गया।
चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी अपनी भारत यात्रा के दौरान प्रयागराज का दौरा किया था और उन्होंने भी इस स्थान का उल्लेख किया है। इससे इस मंदिर की प्राचीनता का पता चलता है।
अक्षयवट का संबंध:
पातालपुरी मंदिर का अक्षयवट वृक्ष से भी गहरा संबंध है। माना जाता है कि अक्षयवट की जड़ें इस मंदिर के नीचे तक फैली हुई हैं। अक्षयवट एक अमर वृक्ष है जिसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। यह माना जाता है कि प्रलय के समय भी यह वृक्ष नष्ट नहीं होता है।
महाकुंभ में महत्व:
महाकुंभ के दौरान पातालपुरी मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है। लाखों श्रद्धालु संगम में स्नान करने के बाद इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर के अंदर का शांत और रहस्यमयी वातावरण भक्तों को एक विशेष आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।
दर्शन और अनुभव:
पातालपुरी मंदिर में प्रवेश करने पर एक अनोखा अनुभव होता है। भूमिगत होने के कारण यहाँ का वातावरण ठंडा और शांत रहता है। मंदिर में विभिन्न देवी-देवताओं की प्राचीन मूर्तियाँ स्थापित हैं, जिनकी पूजा अर्चना की जाती है।
कैसे पहुंचे:
पातालपुरी मंदिर इलाहाबाद किले के अंदर स्थित है। किले में प्रवेश करने के बाद आप मंदिर तक आसानी से पहुँच सकते हैं। महाकुंभ के दौरान, किले में प्रवेश के लिए विशेष व्यवस्था की जाती है।
8. प्रयागराज का काल भैरव मंदिर

काल भैरव को भगवान शिव का उग्र और भयभीत करने वाला रूप माना जाता है। वे समय, विनाश और सुरक्षा के देवता हैं। उन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है, जहाँ उनका एक और प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। काल भैरव की पूजा विशेष रूप से तांत्रिक क्रियाओं और नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा के लिए की जाती है।
प्रयागराज के काल भैरव मंदिर का इतिहास और महत्व:
प्रयागराज के काल भैरव मंदिर का इतिहास भी काफी प्राचीन माना जाता है, हालाँकि इसके सटीक स्थापना का समय ज्ञात नहीं है। स्थानीय लोगों और पंडितों के अनुसार, यह मंदिर कई सदियों पुराना है और इसका उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि इसके साथ कई रोचक और रहस्यमयी कहानियाँ भी जुड़ी हुई हैं।
मंदिर की विशेषताएँ:
- स्थान: यह मंदिर प्रयागराज के मधवापुर बैरहना इलाके में स्थित है।
- पूजा: यहाँ विशेष रूप से मंगलवार और शनिवार को पूजा-अर्चना की जाती है, जिसमें दूर-दूर से लोग आते हैं।
- मान्यताएँ: भक्तों का मानना है कि काल भैरव की पूजा करने से नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती हैं, भय और चिंताएँ कम होती हैं, और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
- प्रसाद: कुछ स्थानों पर काल भैरव को मदिरा का भोग भी लगाया जाता है, हालाँकि प्रयागराज के मंदिर में इस प्रकार की कोई विशेष परंपरा नहीं है।
दर्शन और अनुभव:
मंदिर में प्रवेश करते ही एक शांत और आध्यात्मिक वातावरण का अनुभव होता है। काल भैरव की मूर्ति का दर्शन भक्तों को एक विशेष ऊर्जा से भर देता है। मंदिर के पुजारी नियमित रूप से आरती और पूजा करते हैं, जिसमें शामिल होकर भक्त भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
कैसे पहुंचे:
काल भैरव मंदिर प्रयागराज शहर के भीतर स्थित है और यहाँ तक पहुंचना आसान है। आप शहर के किसी भी हिस्से से टैक्सी, ऑटो रिक्शा या बस द्वारा मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
7. प्रयागराज का अलोपी माता मंदिर

‘अलोपी’ शब्द का अर्थ है ‘गायब हो जाना’ या ‘लुप्त हो जाना’। इस मंदिर का नाम देवी सती के एक अंग के यहाँ लुप्त हो जाने की कथा से जुड़ा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव देवी सती के जले हुए शरीर को लेकर तांडव कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उनके शरीर के टुकड़े कर दिए थे। ये टुकड़े जहाँ-जहाँ गिरे, वे शक्तिपीठ कहलाए। माना जाता है कि प्रयागराज में देवी सती के दाहिने हाथ का पंजा गिरा था और वहीं लुप्त हो गया था। इसी कारण इस स्थान को अलोपी शक्तिपीठ कहा जाता है।
कुछ स्थानीय कहानियाँ यह भी बताती हैं कि किसी समय यहाँ एक दुल्हन अपनी बारात के साथ आ रही थी, तभी डाकुओं ने हमला कर दिया। उस दौरान वह दुल्हन रहस्यमय ढंग से गायब हो गई थी। इन कहानियों के कारण भी इस स्थान का नाम अलोपी पड़ा।
मंदिर की अनूठी विशेषता:
अलोपी माता मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ किसी देवी की मूर्ति स्थापित नहीं है। यहाँ एक लकड़ी का झूला या डोली है, जिसकी पूजा देवी के प्रतीक के रूप में की जाती है। गर्भगृह में एक कुंड भी है, जिसके जल को पवित्र माना जाता है। भक्त इस जल को पालने पर चढ़ाते हैं और अपनी मनोकामनाएँ पूरी होने की प्रार्थना करते हैं। यह निराकार रूप में देवी की पूजा का एक अनूठा उदाहरण है।
मंदिर का महत्व:
अलोपी माता मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है, जो इसे और भी महत्वपूर्ण बनाता है। नवरात्रि के दौरान यहाँ भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। माना जाता है कि यहाँ कलाई पर रक्षा सूत्र बांधने से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं और देवी उनकी रक्षा करती हैं।
दर्शन और अनुभव:
मंदिर में प्रवेश करते ही एक शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक वातावरण का अनुभव होता है। झूले की पूजा और मंत्रोच्चारण से एक विशेष ऊर्जा का संचार होता है। मंदिर का शांत वातावरण भक्तों को ध्यान और चिंतन के लिए प्रेरित करता है।
कैसे पहुंचे:
अलोपी माता मंदिर प्रयागराज शहर के अलोपीबाग क्षेत्र में स्थित है। यहाँ तक पहुंचने के लिए आप शहर के किसी भी हिस्से से टैक्सी, ऑटो रिक्शा या बस का उपयोग कर सकते हैं।
6. प्रयागराज का मनकामेश्वर महादेव मंदिर

‘मनकामेश्वर’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – ‘मन’ यानी ‘मन’ या ‘इच्छा’ और ‘कामेश्वर’ यानी ‘इच्छाओं के स्वामी’। इस प्रकार, मनकामेश्वर का अर्थ है ‘मन की इच्छाओं को पूरा करने वाले स्वामी’।
मंदिर का इतिहास और पौराणिक महत्व:
मनकामेश्वर मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। विभिन्न पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में इस मंदिर का उल्लेख मिलता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर की स्थापना स्वयं भगवान शिव ने श्रीराम के आदेश पर की थी जब वे वनवास के दौरान यहाँ आए थे। यह भी कहा जाता है कि माता सीता ने भी यहाँ भगवान शिव की पूजा अर्चना की थी।
कुछ स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, मंदिर में स्थित शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ था और हर साल जौ के दाने के बराबर बढ़ता है। इस कारण भी इस मंदिर का महत्व और बढ़ जाता है।
मंदिर की विशेषताएँ:
- स्थान: मनकामेश्वर महादेव मंदिर प्रयागराज के उत्तरी भाग में यमुना नदी के किनारे स्थित है। कुछ स्रोतों के अनुसार यह सरस्वती घाट के पास है। कुछ अन्य स्रोतों के अनुसार यह लालापुर शंकरगढ़ क्षेत्र में स्थित है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि आप सही मंदिर पर जा रहे हैं, स्थानीय लोगों से पूछताछ करना उचित होगा।
- शिवलिंग: मंदिर का मुख्य आकर्षण यहाँ का शिवलिंग है, जिसकी पूजा अर्चना की जाती है।
- अन्य देवी-देवता: मंदिर परिसर में हनुमान जी की दक्षिणमुखी मूर्ति के साथ-साथ अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं।
- वातावरण: मंदिर का शांत और पवित्र वातावरण भक्तों को आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है।
दर्शन और पूजा:
मनकामेश्वर मंदिर में प्रतिदिन सुबह और शाम आरती होती है, जिसमें बड़ी संख्या में भक्त शामिल होते हैं। विशेष अवसरों, जैसे महाशिवरात्रि और सावन के महीने में, यहाँ विशेष पूजा अर्चना और अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं।
कैसे पहुंचे:
मनकामेश्वर मंदिर प्रयागराज शहर में स्थित है और यहाँ तक पहुंचना आसान है। शहर के किसी भी हिस्से से आप टैक्सी, ऑटो रिक्शा या बस द्वारा मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
5. प्रयागराज का भारद्वाज आश्रम

महर्षि भारद्वाज एक महान ऋषि, विद्वान और वैज्ञानिक थे। वे सप्तऋषियों में से एक माने जाते हैं। उन्हें आयुर्वेद, धनुर्वेद, और विमानशास्त्र का भी ज्ञाता माना जाता है। उन्होंने ‘भारद्वाज संहिता’ नामक ग्रंथ की रचना की, जिसमें विमानों के निर्माण और संचालन का विस्तृत वर्णन है।
आश्रम का इतिहास और पौराणिक महत्व:
भारद्वाज आश्रम का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। रामायण काल में भगवान राम अपने वनवास के दौरान इस आश्रम में आए थे और महर्षि भारद्वाज का आशीर्वाद प्राप्त किया था। महर्षि ने भरत और उनकी सेना का भी यहाँ स्वागत किया था। इस आश्रम में एक शिवलिंग भी स्थापित है, जिसकी पूजा आज भी की जाती है।
आश्रम की विशेषताएँ:
- स्थान: भारद्वाज आश्रम प्रयागराज के कर्नलगंज क्षेत्र में बालसन चौराहे के पास स्थित है। यह संगम से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर है।
- महर्षि की प्रतिमा: आश्रम में महर्षि भारद्वाज की 32 फीट ऊँची प्रतिमा स्थापित है, जिसका अनावरण 2019 में राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा किया गया था।
- प्राचीन शिवलिंग: आश्रम में एक प्राचीन शिवलिंग है, जिसकी पूजा अर्चना की जाती है।
- शांत वातावरण: आश्रम का शांत वातावरण ध्यान और चिंतन के लिए उपयुक्त है।
आश्रम का वर्तमान स्वरूप और विकास:
वर्तमान में, उत्तर प्रदेश सरकार भारद्वाज आश्रम के विकास पर विशेष ध्यान दे रही है। महाकुंभ 2025 से पहले, आश्रम का कायाकल्प किया जा रहा है और इसे एक भव्य तीर्थ स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है। आश्रम के अंदर स्थित 12 मंदिरों का भी पुनरुद्धार किया जा रहा है। भारद्वाज कॉरिडोर बनाने की भी योजना है, जिससे यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं को सुविधा होगी।
दर्शन और अनुभव:
भारद्वाज आश्रम में दर्शन करने से भक्तों को एक विशेष आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त होता है। यहाँ का शांत वातावरण और महर्षि भारद्वाज की प्रतिमा भक्तों को ज्ञान और प्रेरणा प्रदान करती है।
कैसे पहुंचे:
भारद्वाज आश्रम प्रयागराज शहर के भीतर स्थित है और यहाँ तक पहुंचना आसान है। आप शहर के किसी भी हिस्से से टैक्सी, ऑटो रिक्शा या बस द्वारा आश्रम तक पहुँच सकते हैं।
4. प्रयागराज का नाग वासुकी मंदिर

पौराणिक कथाओं के अनुसार, नाग वासुकी का समुद्र मंथन में महत्वपूर्ण योगदान था। देवताओं और असुरों ने मंदराचल पर्वत को मथनी और वासुकी नाग को रस्सी बनाकर समुद्र का मंथन किया था। मंथन के बाद, थके हुए वासुकी ने भगवान विष्णु के कहने पर प्रयागराज में इसी स्थान पर विश्राम किया था। इसलिए इस जगह का नाम नाग वासुकी मंदिर पड़ा।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, जब देवी गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुईं, तो उनकी धारा नाग वासुकी के फन पर गिरी, जिससे यहाँ भोगवती तीर्थ का निर्माण हुआ।
मंदिर का स्थान और विशेषताएँ:
नाग वासुकी मंदिर प्रयागराज के दारागंज इलाके में गंगा नदी के किनारे स्थित है। यह त्रिवेणी संगम से लगभग 500 मीटर की दूरी पर है।
- नाग वासुकी की प्रतिमा: मंदिर में नाग वासुकी की एक विशाल प्रतिमा स्थापित है, जिसकी भक्त विधि-विधान से पूजा करते हैं।
- प्राकृतिक सौंदर्य: मंदिर गंगा नदी के किनारे स्थित होने के कारण प्राकृतिक सुंदरता से घिरा हुआ है।
- नाग पंचमी का महत्व: नाग पंचमी के दिन यहाँ विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। माना जाता है कि इस दिन नाग वासुकी के दर्शन करने से सर्प दोष से मुक्ति मिलती है।
- कालसर्प दोष निवारण: कुछ लोगों का मानना है कि इस मंदिर में दर्शन करने से कालसर्प दोष का प्रभाव भी कम होता है।
मंदिर का इतिहास और किंवदंतियाँ:
माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना हजारों साल पहले ब्रह्मा के मानस पुत्र द्वारा की गई थी। मंदिर का वर्णन पुराणों में भी मिलता है। एक किंवदंती के अनुसार, मुगल बादशाह औरंगजेब ने इस मंदिर को तोड़ने का प्रयास किया था, लेकिन जैसे ही उसने मूर्ति पर भाला चलाया, मूर्ति से दूध की धारा बह निकली, जिससे वह आश्चर्यचकित रह गया और उसने मंदिर को तोड़ने का विचार त्याग दिया।
दर्शन और पूजा:
नाग वासुकी मंदिर में प्रतिदिन पूजा-अर्चना होती है, लेकिन नाग पंचमी और सावन के महीने में यहाँ विशेष आयोजन होते हैं। इस दौरान दूर-दूर से भक्त यहाँ आकर नाग वासुकी की पूजा करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
कैसे पहुंचे:
नाग वासुकी मंदिर प्रयागराज शहर में स्थित है और यहाँ तक पहुंचना आसान है। आप शहर के किसी भी हिस्से से टैक्सी, ऑटो रिक्शा या बस द्वारा मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
3. प्रयागराज का अक्षयवट

अक्षयवट का उल्लेख हिंदू धर्म के कई प्राचीन ग्रंथों, जैसे रामायण, महाभारत और पुराणों में मिलता है। ‘अक्षय’ का अर्थ है ‘कभी न क्षय होने वाला’ या ‘अविनाशी’। मान्यता है कि यह वृक्ष प्रलय के समय भी नष्ट नहीं हुआ था और यह अमरता, स्थिरता और अविनाशी जीवन का प्रतीक है।
कथाओं के अनुसार, भगवान राम अपने वनवास के दौरान प्रयागराज आए थे और उन्होंने अक्षयवट के नीचे विश्राम किया था। यह भी माना जाता है कि मार्कण्डेय ऋषि ने इसी वृक्ष के नीचे भगवान विष्णु की तपस्या की थी और उन्हें सृष्टि के रहस्य का ज्ञान प्राप्त हुआ था।
अक्षयवट का स्थान और विशेषताएँ:
अक्षयवट इलाहाबाद किले के भीतर स्थित है, जो त्रिवेणी संगम के निकट है।
- विशाल वृक्ष: अक्षयवट एक विशाल बरगद का पेड़ है जिसकी जड़ें दूर-दूर तक फैली हुई हैं। इसकी घनी छाया और विशालता इसे एक विशेष दर्शनीय स्थल बनाती है।
- धार्मिक महत्व: यह वृक्ष हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है और इसकी पूजा अर्चना की जाती है।
- किले के भीतर अवस्थिति: अक्षयवट का इलाहाबाद किले के भीतर होना इसे और भी ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण बनाता है।
अकबर और जहाँगीर का संबंध:
मुगल बादशाह अकबर ने जब इलाहाबाद किले का निर्माण करवाया, तब अक्षयवट को किले के भीतर ही रखा गया। बाद में, जहाँगीर के शासनकाल में, इस वृक्ष को कुछ समय के लिए बंद कर दिया गया था, लेकिन बाद में इसे फिर से खोल दिया गया।
दर्शन और अनुभव:
अक्षयवट के दर्शन करने से भक्तों को एक विशेष शांति और आध्यात्मिक अनुभूति होती है। वृक्ष की प्राचीनता और इससे जुड़ी कहानियाँ भक्तों को इतिहास और पुराणों से जोड़ती हैं।
कैसे पहुंचे:
अक्षयवट इलाहाबाद किले के अंदर स्थित है। किले में प्रवेश करने के बाद आप इस वृक्ष तक आसानी से पहुँच सकते हैं। महाकुंभ के दौरान, किले में प्रवेश के लिए विशेष व्यवस्था की जाती है।
2. प्रयागराज का लेटे हुए हनुमान मंदिर

इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यहाँ स्थापित भगवान हनुमान की लगभग 20 फीट लंबी लेटी हुई प्रतिमा है। ऐसी मान्यता है कि लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद जब हनुमान जी लौट रहे थे, तो वे थकान महसूस कर रहे थे। तब माता सीता के कहने पर उन्होंने संगम के तट पर विश्राम किया था। इसी घटना को स्मरण करते हुए यहाँ लेटे हुए हनुमान जी का मंदिर बनाया गया।
कुछ मान्यताओं के अनुसार, हनुमान जी के बाएं पैर के नीचे कामदा देवी और दाएं पैर के नीचे अहिरावण दबे हुए हैं। उनके दाएं हाथ में राम-लक्ष्मण और बाएं हाथ में गदा सुशोभित है।
मंदिर का इतिहास और महत्व:
इस मंदिर का इतिहास कई सौ वर्ष पुराना माना जाता है। कुछ लोगों का मानना है कि संत समर्थ गुरु रामदास जी ने यहाँ हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की थी। मंदिर परिसर में शिव-पार्वती, गणेश, भैरव, दुर्गा, काली एवं नवग्रह की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं।
यह मंदिर हनुमान जी के सिद्ध मंदिरों में से एक माना जाता है। यहाँ गंगा नदी हनुमान जी की प्रतिमा का स्पर्श करती हुई बहती है। ऐसी मान्यता है कि सच्चे मन से जो भी भक्त इस मंदिर में आता है, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
मंदिर से जुड़े चमत्कार:
इस मंदिर से जुड़े कई चमत्कार भी प्रसिद्ध हैं। एक कथा के अनुसार, एक मुस्लिम शासक ने इस मंदिर को तोड़ने का प्रयास किया था, लेकिन जैसे ही उसने मूर्ति पर वार किया, मूर्ति से दूध की धारा बह निकली, जिससे वह आश्चर्यचकित रह गया और उसने मंदिर को तोड़ने का विचार त्याग दिया।
दर्शन और पूजा:
लेटे हुए हनुमान जी के मंदिर में प्रतिदिन सुबह और शाम आरती होती है, जिसमें बड़ी संख्या में भक्त शामिल होते हैं। हनुमान जयंती और अन्य विशेष अवसरों पर यहाँ विशेष पूजा-अर्चना और अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं।
कैसे पहुंचे:
लेटे हुए हनुमान जी का मंदिर प्रयागराज के दारागंज मोहल्ले में गंगा नदी के किनारे स्थित है। यह त्रिवेणी संगम से कुछ ही दूरी पर है। शहर के किसी भी हिस्से से आप टैक्सी, ऑटो रिक्शा या बस द्वारा मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
1. प्रयागराज का त्रिवेणी संगम

प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, भारत का एक पवित्र शहर है जो उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है। यह शहर गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदियों के संगम के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है, जिसे त्रिवेणी संगम कहा जाता है। यह संगम हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है और यहाँ हर बारह वर्ष में कुंभ मेला का भव्य आयोजन होता है, जिसमें देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं।
त्रिवेणी संगम का पौराणिक महत्व:
त्रिवेणी संगम का हिन्दू धर्म में गहरा धार्मिक महत्व है। माना जाता है कि यहाँ तीन नदियों के संगम में स्नान करने से मनुष्य के सारे पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना के बाद यहीं पर पहला यज्ञ किया था। यह भी माना जाता है कि भगवान राम ने अपने वनवास के दौरान यहाँ कुछ समय बिताया था।
- गंगा: गंगा नदी भारत की सबसे पवित्र नदी मानी जाती है और इसे देवी गंगा के रूप में पूजा जाता है।
- यमुना: यमुना नदी भी एक पवित्र नदी है और इसका उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में मिलता है।
- सरस्वती: सरस्वती नदी एक पौराणिक नदी है जो अब लुप्त हो चुकी है, लेकिन हिन्दू धर्मग्रंथों में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। माना जाता है कि यह नदी अदृश्य रूप से गंगा और यमुना में मिलती है।
त्रिवेणी संगम का भौगोलिक स्वरूप:
त्रिवेणी संगम पर गंगा और यमुना नदियों का स्पष्ट संगम दिखाई देता है। गंगा का पानी अपेक्षाकृत स्वच्छ और नीला होता है, जबकि यमुना का पानी हरापन लिए हुए होता है। संगम स्थल पर नावों की सहायता से जाया जा सकता है और यहाँ पर स्नान करने का विशेष महत्व है।
कुंभ मेला:
कुंभ मेला विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है जो हर बारह वर्ष में प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पर आयोजित होता है। इस मेले में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु आते हैं और संगम में स्नान करते हैं। कुंभ मेले का आयोजन ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर किया जाता है और यह एक अद्भुत और भव्य आयोजन होता है। 2025 में प्रयागराज में फिर से महाकुंभ का आयोजन होने जा रहा है।
त्रिवेणी संगम का ऐतिहासिक महत्व:
त्रिवेणी संगम का इतिहास भी बहुत पुराना है। मुगल काल में अकबर ने यहाँ इलाहाबाद किले का निर्माण करवाया था, जो आज भी यहाँ का एक प्रमुख दर्शनीय स्थल है।
दर्शन और अनुभव:
त्रिवेणी संगम का दर्शन एक अद्भुत और आध्यात्मिक अनुभव होता है। संगम के शांत वातावरण में बैठकर नदियों के संगम को देखना और यहाँ स्नान करना भक्तों के लिए एक विशेष अनुभूति होती है।
कैसे पहुंचे:
प्रयागराज भारत के प्रमुख शहरों से रेल, सड़क और हवाई मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। प्रयागराज जंक्शन यहाँ का मुख्य रेलवे स्टेशन है और यहाँ का निकटतम हवाई अड्डा प्रयागराज हवाई अड्डा है। शहर के भीतर आप टैक्सी, ऑटो रिक्शा या बस द्वारा त्रिवेणी संगम तक पहुँच सकते हैं।
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महाकुंभ 2025 की यात्रा की योजना
यदि आप महाकुंभ 2025 में प्रयागराज जाने की योजना बना रहे हैं, तो कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है:
- यात्रा की योजना पहले से बना लें: महाकुंभ के दौरान बहुत भीड़ होती है, इसलिए यात्रा की योजना पहले से बना लेना उचित होगा।
- रहने की व्यवस्था: प्रयागराज में होटलों और धर्मशालाओं के अलावा, महाकुंभ के दौरान अस्थायी शिविर भी लगाए जाते हैं जहाँ आप ठहर सकते हैं। ऑनलाइन बुकिंग और मेला क्षेत्र में उपलब्ध सुविधाओं की जानकारी के लिए आधिकारिक वेबसाइट देखें।
- परिवहन: प्रयागराज तक पहुँचने के लिए हवाई, रेल और सड़क मार्ग उपलब्ध हैं। मेला क्षेत्र में घूमने के लिए बसें, ऑटो रिक्शा और ई-रिक्शा उपलब्ध होंगे।
- सुरक्षा: महाकुंभ के दौरान सुरक्षा के कड़े इंतजाम होते हैं
FAQs
1. प्रयागराज महाकुंभ 2025 कब शुरू होगा और कब तक चलेगा?
महाकुंभ एक लंबे समय तक चलने वाला आयोजन है, लेकिन इसमें कुछ महत्वपूर्ण स्नान तिथियाँ होती हैं। 2025 के महाकुंभ की कुछ मुख्य स्नान तिथियाँ इस प्रकार हैं:
10 जनवरी 2025: पौष शुक्ल एकादशी (प्रथम स्नान)
13 जनवरी 2025: पौष पूर्णिमा
14 जनवरी 2025: मकर संक्रांति (प्रथम शाही स्नान)
29 जनवरी 2025: मौनी अमावस्या (द्वितीय शाही स्नान)
2 फरवरी 2025: बसंत पंचमी (तृतीय शाही स्नान)
12 फरवरी 2025: माघ पूर्णिमा
26 फरवरी 2025: महाशिवरात्रि
हालांकि, मेला इन तिथियों के आस-पास कई हफ़्तों तक चलता है।
2. महाकुंभ में शाही स्नान क्या होता है?
शाही स्नान कुंभ मेले का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह एक औपचारिक स्नान होता है जो विभिन्न अखाड़ों के साधु-संतों द्वारा एक निश्चित तिथि और समय पर किया जाता है। इस दौरान साधु-संत एक भव्य जुलूस में संगम तट पर आते हैं और स्नान करते हैं। यह दृश्य अत्यंत ही भव्य और दर्शनीय होता है।
3. प्रयागराज कैसे पहुंचे?
प्रयागराज भारत के प्रमुख शहरों से रेल, सड़क और हवाई मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
रेल: प्रयागराज जंक्शन यहाँ का मुख्य रेलवे स्टेशन है।
सड़क: राष्ट्रीय राजमार्गों के माध्यम से प्रयागराज देश के कई शहरों से जुड़ा हुआ है।
हवाई मार्ग: प्रयागराज हवाई अड्डा (IXD) यहाँ का निकटतम हवाई अड्डा है।
4. महाकुंभ के दौरान आवास की व्यवस्था कैसे करें?
महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में आवास की व्यवस्था करना थोड़ा चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि इस समय यहाँ लाखों श्रद्धालु आते हैं। इसलिए, पहले से ही बुकिंग करना उचित रहता है। यहाँ विभिन्न प्रकार के आवास उपलब्ध हैं, जैसे:
सरकारी शिविर: सरकार द्वारा श्रद्धालुओं के लिए अस्थायी शिविर लगाए जाते हैं।
निजी होटल और गेस्ट हाउस: शहर में कई होटल और गेस्ट हाउस भी उपलब्ध हैं।
ऑनलाइन बुकिंग: आप ऑनलाइन वेबसाइटों के माध्यम से भी आवास बुक कर सकते हैं।